उत्तराखंड का एक त्यौहार : खतड़वा

 खतड़वा त्यौहार वर्तमान में भ्रामक जानकारियों के कारण उपेक्षा झेल रहा है , और इसका अब अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है। 


खतड़वा त्यौहार उत्तराखंड और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में प्राचीन समय से मनाया जाने वाला त्यौहार है। बरसात के मौसम की समाप्ति के समय यह साफ सफाई से सम्बंधित एक त्यौहार है। जब खेतों में फसल और घास कतई जाती है उस वक़्त यह त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन जानवरों के गोठ (रहने का कमरा ) की साफ सफाई की जाती है। बरसात के समय गाय के गोठ में पानी और सीलन की वजह से अनेक कीड़े मकोड़े हो जाते हैं, इस दिन उनके गोठ की अच्छे से साफ सफाई करके उनके बैठने और सोने के लिए साफ सुखी मुलायम घास बिछाई जाती है। जानवरों को खाने के लिए हरी घास दी जाती है। 

इस दिन घर से थोड़ा दूर किसी ऊंचे स्थान पर चीड़ के पेड़ की एक मोटी टहनी को गाड़कर उसमें सूखी घास और अन्य चीजों का ढेर बनाया जाता है। जिसे   खतड़वा कहते हैं। रात्रि के समय फिर छिलकों की एक मशाल बनाकर जलाई जाती है और उसे जानवरों के गोठ में घुमाकर बनाये गए सूखी घास के ढेर की ओर जाते हैं और ये छिलके  खतड़वा में डाल देते हैं जिससे वो ढेर जलने लगता है। इसके साथ कुश की घास का एक महिला का पुतला बनाकर उसे गोबर के ढेर में दबा दिया जाता है। छोटे बच्चे घिंगारू या किरमोड़े के कांटों की टहनी में फूलों को लगाकर सजाते हैं जिसे फूलहारी बोला जाता है। उसे वो हाथों में लेकर खतड़वा की ओर जाते हैं। खतड़वा को जलाकर उसमें ककड़ी काटकर डाली जाती है और ककड़ी का प्रसाद सभी लोग कहते हैं । 


बरसात के समय कई सारे कीड़े मकोड़े हो जाते हैं उन्हें गाय के गोठ से भागने के लिए ही साफ सफाई का यह त्योहार मनाया जाता है। 


यह भी मान्यता है कि खताड़ शब्द का अर्थ कपड़े से होता है। इस माह से ठंड बढ़ने लगती है अतः जो गरम कपड़े हैं वो बरसात की सीलन से जो खराब हुई हैं उन्हें धूप में सुखाया जाता है। रजाई और गरम कम्बल को निकालकर साफ करके उन्हें धूप में खूब सुखाया जाता है। कहा जाता है कि खतड़वा के दिन से एक खताड़ (एक कपड़ा) ठंडा बढ़ जाता है। अतः उसी की शुरुवात में यह त्योहार मनाया जाता है। 



खतड़वा से संबंधित एक अन्य कहानी भी प्रचलित है, जिसका इतिहास में कोई प्रमाण नहीं मिलता है, इस कहानी के अनुसार गढ़वाल के राजा खतड़ सिंह और कुमाऊँ के राजा गड़ सिंह की लड़ाई की कहानी है। कुमाऊं के राजा गड़ सिंह ने गढ़वाल के राजा को एक लड़ाई में पराजित कर दिया था और अपने साथियों को संदेश देने के लिए एक ऊंची पहाड़ी पर आग जलाई, सामने की पहाड़ी पर उनके साथियों ने देखा और विजय संदेश को आगे को भेजने हेतु एक के बाद एक पहाड़ी के ऊंचे हिस्से में आग लगाई गई जिससे यह समाचार सब तक पहुंच जाए। तब से खतड़वा एक विजयोत्सव के रूप में मनाया जाता है। परंतु इस कहानी के कोई इतिहास में साक्ष्य नहीं मिले हैं। इसलिए इसे भ्रामक जानकारी के रूप में कहा जा सकता है। 




,

समस्त जानकारी स्वयं द्वारा सुने हुए किस्से कहानियों पर आधारित है। 




#khatdu #khatduwa #खतड़वा #उत्तराखंड #uttarakhandlokparv #खतडू #कुमाऊँ #गढ़वाल #kumaon #garhwal 

Comments

  1. Bhut sundar jankari di h pantji apne

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने 👌👌👌👌👌

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

Ice cream after dinner: messing with health

सूक्ष्मदर्शी (Microscope)

हमारे आस पास के पदार्थ : NCERT Science 9th