हमारे आस पास के पदार्थ : NCERT Science 9th


हमारे आस-पास के पदार्थ



अपने चारों ओर नज़र दौड़ाने पर हमें विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ नज़र आती हैं, जिनका आकार, आकृति और बनावट अलग-अलग होता है। इस विश्व में प्रत्येक वस्तु जिस सामग्री से बनी होती है उसे वैज्ञानिकों ने ‘पदार्थ’ का नाम दिया। जिस हवा में हम श्वास लेते हैं, जो भोजन हम खाते हैं, पत्थर, बादल, तारे, पौधे एवं पशु, यहाँ तक कि पानी की एक बूँद या रेत का एक कण, ये सभी पदार्थ हैं। ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि  सभी वस्तुओं का द्रव्यमान होता है और ये कुछ स्थान (आयतन*) घेरती हैं।



आधुनिक वैज्ञानिकों ने पदार्थ को भौतिक गुणधर्म एवं रासायनिक प्रकृति के आधार पर दो प्रकार से वर्गीकृत किया है।



 पदार्थ का भौतिक स्वरूप

 पदार्थ कणों से मिलकर बना होता है

बहुत समय तक पदार्थ की प्रकृति के बारे में दो विचारधाराएँ प्रचलित थीें। एक विचारधारा का यह मानना था कि पदार्थ लकड़ी के टुकड़े की तरह सतत होते हैं। परंतु अन्य विचारधारा का मानना था कि पदार्थ रेत की तरह के कणों से मिलकर बने हैं। आइए एक क्रियाकलाप के द्वारा पदार्थ के स्वरूप के बारे में ये निर्णय करते हैं कि ये सतत हैं या कणों से बने हैं?

क्रियाकलाप 1.1

एक 100 mL का बीकर लें। इस बीकर को जल से आधा भरकर जल के स्तर पर निशान लगा दें।

दिए गए नमक या शर्करा को काँच की छड़ की मदद से जल में घोल दें।

जल के स्तर में आए बदलाव पर ध्यान दें।

आपके अनुसार, नमक या शर्करा का क्या हुआ?

ये कहाँ गायब हो गए?

क्या जल के स्तर में कोई बदलाव आया?

इन प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए हमें इस विचार को स्वीकारना होगा कि सभी पदार्थ कणों से बने होते हैं। उपरोक्त क्रियाकलाप में चम्मच में रखी गई नमक या शर्करा अब पूरे पानी में घुल गई है। जैसा कि चित्र 1.1 में दर्शाया गया है।



चित्र 1.1: जब हम जल में नमक घोलते हैं, तो नमक के कण जल के कणों के बीच के रिक्त स्थानों में समावेशित हो जाते हैं।

.2 पदार्थ के ये कण कितने छोटे हैं?

क्रियाकलाप 1.2

पोटैशियम परमैंगनेट के दो या तीन क्रिस्टल को 100 mL पानी में घोल लें।

इस घोल में से लगभग 10 mL घोल निकालकर उसे 90 mL जल में मिला दें।

फिर इस उपरोक्त घोल में से 10 mL निकालकर उसे भी 90 mL जल में मिला दें।

इसी प्रकार इस घोल को 5 से 8 बार तक तनुकृत करते रहें।

क्या जल अब भी रंगीन है?


चित्र 1.2: अनुमान लगाइए कि पदार्थ के कण कितने छोटे हैं? प्रत्येक बार तनुकृत करने पर घोल का रंग हलका होता जाता है, फि्ηर भी पानी रंगीन नज़र आता है।



यह प्रयोग दर्शाता है कि पोटैशियम परमैंगनेट के बहुत थोड़े से क्रिस्टलों से पानी की बहुत अधिक मात्रा (1000 L) भी रंगीन हो जाती है। इससे हम ये निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि पोटैशियम परमैंगनेट के केवल एक क्रिस्टल में कई सूक्ष्म कण होंगे। ये कण छोटे-छोटे कणों में विभाजित होते रहते हैं। अन्ततः एक स्थिति में ये कण और छोटे भागों में विभाजित नहीं किये जा सकते हैं।

पोटैशियम परमैंगनेट की जगह 2 mL डेटॉल से भी हम ये क्रियाकलाप कर सकते हैं। लगातार तनुकृत होने पर भी उसकी महक हमें मिलती रहती है।

पदार्थ के कण बहुत छोटे होते हैं — इतने छोटे कि हम कल्पना भी नहीं कर सकते।

पदार्थ के कणों के अभिलाक्षणिक गुण

1 पदार्थ के कणों के बीच रिक्त स्थान होता है

क्रियाकलाप 1.1 और 1.2 में नमक, शर्करा, डेटॉल या पोटैशियम परमैंगनेट के कण समान रूप से पानी में वितरित हो गए। इसी प्रकार, जब हम चाय, कॉफ़ी या नींबू-पानी बनाते हैं, तो एक पदार्थ के कण दूसरे पदार्थ के कणों के रिक्त स्थानों में समावेशित हो जाते हैं। यह दर्शाता है, कि पदार्थ के कणों के बीच पर्याप्त रिक्त स्थान होता है।

.2 पदार्थ के कण निरंतर गतिशील होते हैं

क्रियाकलाप 1.3

अपनी कक्षा के किसी कोने में एक बुझी हुई अगरबत्ती रख दें। इसकी सुगंध लेने के लिए आपको इसके कितने समीप जाना पड़ता है?

अब अगरबत्ती जला दें। क्या होता है? क्या दूर से ही इसकी सुगंध अपको मिलती है?

अपने प्रेक्षण को नोट करें।

क्रियाकलाप 1.4

जल से भरे दो गिलास या दो बीकर लें।

पहले बीकर के एक सिरे पर सावधानी से एक बूँद लाल या नीली स्याही डाल दें और दूसरे में शहद डाल दें।

इनको अपने घर में या कक्षा के एक कोने में रख दें।

अपने प्रेक्षण को नोट करें।

स्याही की बूँद डालने के तुरंत बाद आपने क्या देखा?

शहद की बूँद डालने के तुरंत बाद आपने क्या देखा?

स्याही का रंग पूरे जल में एकसमान रूप से फैलने में कितने दिन या घंटे लगते हैं?

क्रियाकलाप 1.5

एक गिलास गर्म पानी से और दूसरा ठंडे पानी से भरे गिलास में कॉपर सल्फ़ेट या पोटैशियम परमैंगनेट का एक क्रिस्टल डालें और एक ओर रख दें। हिलाएँ नहीं।

क्रिस्टल को सतह पर बैठने दें।

गिलास में ठोस क्रिस्टल के ठीक ऊपर क्या दिखाई देता है?

समय बीतने पर क्या होता है?

इससे ठोस और द्रव के कणों के बारे में क्या पता चलता है?

क्या तापमान के साथ मिश्रित होने की दर बदलती है? क्यों और कैसे?

उपरोक्त तीनों क्रियाकलापों (1.3, 1.4 और 1.5) से हम निम्नलिखित निष्कर्ष निकाल सकते हैंः

पदार्थ के कण निरंतर गतिशील होते हैं, अर्थात, उनमें गतिज ऊर्जा होती है। तापमान बढ़ने से कणों की गति तेज़ हो जाती है। इसलिए हम कह सकते हैं कि तापमान बढ़ने से कणों की गतिज ऊर्जा भी बढ़ जाती है।

उपरोक्त तीनों क्रियाकलापों में हमने देखा कि पदार्थ के कण अपने आप ही एक-दूसरे के साथ अंतःमिश्रित हो जाते हैं। एेसा कणों के रिक्त स्थानों में समावेश के कारण होता है। दो विभिन्न पदार्थों के कणों का स्वतः मिलना ही विसरण कहलाता है। हमें यह भी पता चलता है कि गर्म करने पर विसरण तेज़ हो जाता है। एेसा क्यों होता है?

.3 पदार्थ के कण एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं

क्रियाकलाप 1.6

इस खेल को एक मैदान में खेलें। आगे बताए गए ढंग से चार समूह बनाकर मानव- शृंखला बनाएँः

पहला समूह ‘ईद्-मिश्मी नर्तकों’ की तरह एक-दूसरे को पीछे से कसकर पकड़ ले।






दूसरा समूह एक-दूसरे का हाथ पकड़कर मानव शृंखला बना ले।

तीसरा समूह केवल उंगली के सिरे से छूकर एक शृंखला बना ले।

अब चौथा समूह उपरोक्त वर्णित तीनों मानव

शृृंखलाओं को तोड़कर छोटे समूहों में बाँटने का प्रयास करे।

किस समूह को तोड़ना आसान था? और क्यों?

यदि हम प्रत्येक विद्यार्थी को पदार्थ का एक कण मानें, तो किस समूह में कणों ने एक-दूसरे को सबसे अधिक बल से पकड़ रखा था?

क्रियाकलाप 1.7

एक लोहे की कील, एक चॉक का टुकड़ा और एक रबर बैंड लें।

इन पर हथौड़ा मार कर, काट कर, या खींचकर उसे भंगुर करनेे का प्रयास करें।

इन तीनों में से किसके कण अधिक बल से एक-दूसरे से जुड़े हैं?

क्रियाकलाप 1.8

एक थाली में जल लेकर उसे उंगली से काटने का प्रयास करें।

क्या जल की सतह कटती है?

जल की सतह न कटने का क्या कारण है?

उपरोक्त तीनों क्रियाकलाप सुझाते हैं कि पदार्थ के कणों के बीच एक बल कार्य करता है। यह बल कणों को एक साथ रखता है। इस आकर्षण बल का सामर्थ्य प्रत्येक पदार्थ में अलग-अलग होता है।








1.3 पदार्थ की अवस्थाएँ

अपने आस-पास के पदार्थों को ध्यान से देखें। ये कितने प्रकार के हैं? हम पाते हैं कि पदार्थ अपने तीन रूप में होते हैं — ठोस, द्रव और गैस। पदार्थ की ये अवस्थाएँ उसके कणों की विभिन्न विशेषताओं के कारण होती हैं।

अब हम पदार्थ की तीनों अवस्थाओं के गुणों का विस्तार से अध्ययन करेंगे।




 ठोस अवस्था

क्रियाकलाप 1.9

निम्नलिखित वस्तुओं को एकत्रित करें - पेन, किताब, सूई और लकड़ी की छड़।

इन वस्तुओं के चारों ओर पेंसिल घुमाकर इनके आकार का रेखाचित्र बनाएँ।

क्या इन सभी का निश्चित आकार, स्पष्ट सीमाएँ तथा स्थिर आयतन है?

इन पर हथौड़ा मारने, खींचने या गिराने से क्या होता है?

क्या इनका एक-दूसरे में विसरण संभव है?

बल लगाकर इनको संपीडित करने का प्रयास करें। क्या इनका संपीडन होता है?

उपरोक्त सभी उदाहरण ठोस के हैं। हम देख सकते हैं कि इन सभी का एक निश्चित आकार, स्पष्ट सीमाएँ तथा स्थिर आयतन यानी नगण्य संपीड्यता होती है। बाह्य बल लगाने पर भी ठोस अपने आकार को बनाए रखते हैं। बल लगाने पर ठोस टूट सकते हैं लेकिन इनका आकार नहीं बदलता। इसलिए ये दृढ़ होते हैं।

निम्नलिखित पर विचार कीजिए:

(a) रबर बैंड को क्या माना जाएगा। क्या खींचकर इसका आकार बदला जा सकता है? क्या ये ठोस है?

(b) विभिन्न आकार के बर्तनों में रखने पर चीनी और नमक उन्हीं बर्तनों के आकार ले लेते हैं। क्या ये ठोस हैं?

(c) स्पंज क्या है? यह ठोस है लेकिन फि्ηर भी इसका संपीडन संभव है। क्यों?

ये सभी ठोस ही हैं क्योंकि-

बाह्य बल लगाए जाने पर रबर बैंड का आकार बदलता है और बल हटा लेने पर यह पुनः अपने मूल आकार में आ जाता है। अत्यधिक बल लगाने पर यह टूट जाता है।

चाहे हम शर्करा या नमक को अपने हाथ में लें, या किसी प्लेट या ज़ार में रखें, इनके क्रिस्टलों के आकार नहीं बदलते हैं।

स्पंज में बहुत छोटे छिद्र होते हैं, जिनमें वायु का समावेश होता है। जब हम इसे दबाते हैं तो वे वायु बाहर निकलती है, जिससे इसका संपीडन संभव होता है।

 द्रव अवस्था

क्रियाकलाप 1.10

निम्नलिखित वस्तुओं को एकत्रित करें-

(a) जल, खाना पकाने का तेल, दूध, जूस, शीतल पेय।

(b) विभिन्न आकार के बर्तन। प्रयोगशाला के एक मापक सिलिंडर की सहायता से इन बर्तनों में 50 mL पर निशान लगा लें।

इन द्रवों को फ़र्श पर डाल देने पर क्या होगा?

किसी एक द्रव का 50 mL मापकर विभिन्न बर्तनों में क्रमशः एक-एक करके डालें। क्या प्रत्येक बार आयतन एकसमान रहता है?

क्या द्रव का आकार एकसमान रहता है?

द्रव को एक बर्तन से दूसरे बर्तन में उड़ेलने पर क्या यह आसानी से बहता है?

प्रेक्षण से हम पाते हैं कि द्रव का आकार नहीं लेकिन आयतन निश्चित होता है। जिस बर्तन में इन्हें रखा जाए तो ये उसी का आकार ले लेते हैं। द्रवों में बहाव होता है और इनका आकार बदलता है, इसीलिए ये दृढ़ नहीं लेकिन तरल होते हैं।

क्रियाकलाप 1.4 और 1.5 के संदर्भ में हमने देखा कि ठोस और द्रव का विसरण द्रवों में संभव है। वातावरण की गैसें विसरित होकर जल में घुल जाती हैं। ये गैसें, विशेषतः अॉक्सीजन एवं कार्बन डाइअॉक्साइड जलीय जंतुओं तथा पौधों के लिए अनिवार्य होती हैं।

सभी जीवधारी अपने जीवन निर्वाह के लिए श्वास लेते हैं। जलीय जंतु जल में घुली अॉक्सीजन के कारण श्वास लेते हैं। इस तरह से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि द्रव में ठोस, द्रव और गैस तीनों का विसरण संभव है। ठोसों की अपेक्षा द्रवों में विसरण की दर अधिक होती है। एेसा इसलिए है क्योंकि द्रव अवस्था में पदार्थ के कण स्वतंत्र रूप से गति करते हैं और ठोस की अपेक्षा द्रव के कणों में रिक्त स्थान भी अधिक होता है।

गैसीय अवस्था

आपने कभी उस गुब्बारेवाले पर ध्यान दिया है, जो गैस के एक ही सिलिंडर से बहुत सारे गुब्बारों में हवा भरता है? उससे पता लगाएँ कि एक सिलिंडर से वह कितने गुब्बारे भरता है? उससे पूछिए कि सिलिंडर में कौन-सी गैस है?

क्रियाकलाप 1.11

100 mL की तीन सिरिंज लें और उनके सिरे को रबर के कॉर्क से बंद कर दें, जैसा चित्र 1.4 में दिखाया गया है।

सभी सिरिंजों के पिस्टन को हटा लें।

पहली सिरिंज में हवा रहने दें, दूसरी में जल और तीसरी में चॉक के टुकड़े भर दें।

पिस्टन को वापस सिरिंज में लगाएँ। सिरिंज के पिस्टन की गतिशीलता आसान करने के लिए उस पर थोड़ी वैसलीन लगा दें।

अब पिस्टन को सिरिंज में डालकर संपीडित करने की कोशिश करें।




आपने क्या देखा? किस स्थिति में पिस्टन आसानी से अंदर चला गया?

अपने प्रेक्षण से आपने क्या अनुमान लगाया?

हमने देखा कि ठोसों एवं द्रवों की तुलना में गैसों की संपीड्यता (compression) काफ़ी अधिक होती है। हमारे घरों में खाना बनाने में उपयोग की जाने वाली द्रवीकृत पेट्रोलियम गैस (LPG) या अस्पतालों में दिए जाने वाले अॉक्सीजन सिलिंडर में संपीडित गैस होती है। आजकल वाहनों में ईंधन के रूप में संपीडित प्राकृतिक गैस (CNG) का उपयोग होता हैं। संपीड्यता काफ़ी अधिक होने के कारण गैस के अत्यधिक आयतन को एक कम आयतन वाले सिलिंडर में संपीडित किया जा सकता है एवं आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जा सकता है।

हमारी नाक तक पहुँचने वाली गंध से बिना रसोईं में प्रवेश किए ही हम जान सकते हैं कि क्या पकाया जा रहा है? ये गंध हम तक कैसे पहुँचती है? खाने की गंध के कण वायु में मिल जाते हैं और रसोई से फैलकर हम तक पहुँच जाते हैं। यह गंध के कण और दूर भी जा सकते हैं। पके हुए गर्म खाने की महक हमारे पास तक कुछ ही क्षणों में पहुँच जाती है, इसकी तुलना ठोस एवं द्रवों के विसरण से करें। कणों की तेज़ गति और अत्यधिक रिक्त स्थानों के कारण गैसों का अन्य गैसों में विसरण बहुत तीव्रता से होता है।





गैसीय अवस्था में कणों की गति अनियमित और अत्यधिक तीव्र होती है। इस अनियमित गति के कारण ये कण आपस में एवं बर्तन की दीवारों से टकराते हैं। बर्तन की दीवार पर गैस कणों द्वारा प्रति इकाई क्षेत्र पर लगे बल के कारण गैस का दबाव बनता है।







1.4 क्या पदार्थ अपनी अवस्था को बदल सकता है?

अपने प्रेक्षण से हम जानते हैं कि जल पदार्थ की तीनों अवस्थाओं में रह सकता हैः

ठोस, जैसे बर्फ़,

द्रव, जैसे जल, एवं

गैस, जैसे जलवाष्प।

अवस्था बदलने के दौरान पदार्थ के अंदर क्या होता है? अवस्था के परिवर्तन से पदार्थ के कणों पर क्या प्रभाव पड़ता है? क्या हमें इन प्रश्नों का उत्तर नहीं खोजना चाहिए?

 तापमान परिवर्तन का प्रभाव

क्रियाकलाप 1.12

एक बीकर में 150 ग्राम बर्फ़ का टुकड़ा लें एवं चित्र 1.6 के अनुसार उसमें प्रयोगशाला में प्रयुक्त थर्मामीटर को इस प्रकार लटका दें कि थर्मामीटर का बल्ब बर्फ़ को छू रहा हो।

धीमी आँच पर बीकर को गर्म करना शुरू करें।

जब बर्फ़ पिघलने लगे, तो तापमान नोट कर लें।

जब संपूर्ण बर्फ़ जल में परिवर्तित हो जाए, तो पुनः तापमान नोट करें।

ठोस से द्रव अवस्था में होने वाले परिवर्तन में प्रेक्षण को नोट करें।

अब बीकर में एक काँच की छड़ डालें और हिलाते हुए गर्म करें, जब तक जल उबलने न लगे।

थर्मामीटर की माप पर बराबर नज़र रखे रहें, जब तक कि अधिकतर जलवाष्प न बन जाए।

जल के द्रव अवस्था से गैसीय अवस्था में परिवर्तन में प्रेक्षण को नोट करें।

ठोस के तापमान को बढ़ाने पर उसके कणों की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है। गतिज ऊर्जा में वृद्धि होने के कारण कण अधिक तेज़ी से कंपन करने लगते हैं। ऊष्मा के द्वारा प्रदत्त की गई ऊर्जा कणों के बीच के आकर्षण बल को पार कर लेती है। इस कारण कण अपने नियत स्थान को छोड़कर अधिक स्वतंत्र होकर गति करने लगते हैं। एक अवस्था एेसी आती है, जब ठोस पिघलकर द्रव में परिवर्तित हो जाता है। जिस न्यूनतम तापमान पर ठोस पिघलकर द्रव बन जाता है, वह इसका गलनांक कहलाता है।

चित्र 1.6: (a) बर्फ़ का जल बदलने की प्रक्रिया, (b) जल से जलवाष्प में बदलने की प्रक्रिया
किसी ठोस का गलनांक उसके कणों के बीच के आकर्षण बल के सामर्थ्य को दर्शाता है।
बर्फ़ का गलनांक 273.15 K* है। गलने की प्रक्रिया यानी ठोस से द्रव अवस्था में परिवर्तन को संगलन भी कहते हैं। 

*नोट ः तापमान की अंतर्राष्ट्रीय (SI) मात्रक केल्विन (K) है, 0 °C = 273.15 K होता है। सुविधा के लिए हम दशमलव का पूर्णांक बनाकर 00 C = 273 K ही मानते हैं। तापमान की माप केल्विन से सेल्सियस में बदलने के लिए दिए हुए तापमान से 273 घटाना चाहिए और सेल्सियस से केल्विन में बदलने के लिए दिए हुए तापमान में 273 जोड़ देना चाहिए।

किसी ठोस के गलने की प्रक्रिया में तापमान समान रहता है, एेसे में ऊष्मीय ऊर्जा कहाँ जाती है?

गलने के प्रयोग की प्रक्रिया के दौरान आपने ध्यान दिया होगा कि गलनांक पर पहुँचने के बाद, जब तक संपूर्ण बर्फ़ पिघल नहीं जाती, तापमान नहीं बदलता है। बीकर को ऊष्मा प्रदान करने के बावजूद भी एेसा ही होता है। कणों के पारस्परिक आकर्षण बल को वशीभूत करके पदार्थ की अवस्था को बदलने में इस ऊष्मा का उपयोग होता है। चूँकि तापमान में बिना किसी तरह की वृद्धि दर्शाए इस ऊष्मीय ऊर्जा को बर्प़η अवशोषित कर लेती है, यह माना जाता है कि यह बीकर में ली गई सामग्री में छुपी रहती है, जिसे गुुप्त ऊष्मा कहते हैं। यहाँ गुप्त का अभिप्राय छुपी हुई से है। वायुमंडलीय दाब पर 1 kg ठोस को उसके गलनांक पर द्रव में बदलने के लिए जितनी ऊष्मीय ऊर्जा की आवश्यकता होती है, उसे संगलन की प्रसुप्त ऊष्मा कहते हैं, अर्थात् 0 0C (273 K) पर जल के कणों की ऊर्जा उसी तापमान पर बर्फ़ के कणों की ऊर्जा से अधिक होती है।

जब हम जल में ऊष्मीय ऊर्जा देते हैं, तो कण अधिक तेज़ी से गति करते हैं। एक निश्चित तापमान पर पहुँचकर कणों में इतनी ऊर्जा आ जाती है कि वे परस्पर आकर्षण बल को तोड़कर स्वतंत्र हो जाते हैं। इस तापमान पर द्रव गैस में बदलना शुरू हो जाता है। वायुमंडलीय दाब पर वह तापमान जिस पर द्रव उबलने लगता है, उसे इसका क्वथनांक कहते हैं। क्वथनांक समष्टि गुण है। द्रव के सभी कणों को इतनी ऊर्जा मिल जाती है कि वे वाष्प में बदल जाते हैं।

जल के लिए यह तापमान 373 K (100 0C = 273 + 100 = 373 K)

क्या आप वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा को परिभाषित कर सकते हैं? इसे उसी तरह परिभाषित कीजिए, जैसे हमने संगलन की प्रसुप्त ऊष्मा को परिभाषित किया है। 373 K (100 0C) तापमान पर भाप अर्थात वाष्प के कणों में उसी तापमान पर पानी के कणों की अपेक्षा अधिक ऊर्जा होती है। एेसा इसलिए है, क्योंकि भाप के कणों ने वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा के रूप में अतिरिक्त ऊष्मा अवशोषित कर ली है।



अतः हम यह कह सकते हैं कि तापमान बदलकर हम पदार्थ को एक अवस्था से दूसरी अवस्था में बदल सकते हैं।

हमने सीखा कि गर्म करने पर पदार्थ की अवस्था बदल जाती है। गर्म होने पर ये ठोस से द्रव और द्रव से गैस बन जाते हैं। लेकिन कुछ एेसे पदार्थ हैं, जो द्रव अवस्था में परिवर्तित हुए बिना, ठोस अवस्था से सीधे गैस में और वापस ठोस में बदल जाते हैं।

क्रियाकलाप 1.13

थोड़ा सा कपूर या अमोनियम क्लोराइड लें और इसे चूर्ण करके चीनी की प्याली (China dish) में डाल दें।

एक कीप को उल्टा करके इस प्याली के ऊपर रख दें।

इस कीप के एक सिरे पर रुई का एक टुकड़ा रख दें, जैसा चित्र 1.7 में दर्शाया गया है।


चित्र 1.7: अमोनियम क्लोराइड का ऊर्ध्वपातन



अब धीरे-धीरे गर्म करें और ध्यान से देखें।

उपरोक्त क्रियाकलाप से आप क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं?

द्रव अवस्था में परिवर्तित हुए बिना ठोस अवस्था से सीधे गैस में बदलने की प्रक्रिया को ऊर्ध्वपातन कहते हैं और गैस से सीधे ठोस बनने की प्रक्रिया को निक्षेपण कहते हैं।

 दाब-परिवर्तन का प्रभाव

हम जानते हैं कि घटक कणों के बीच की दूरी में अंतर होने के कारण पदार्थों की विभिन्न अवस्थाओं में अंतर होता है। किसी सिलिंडर में भरी गैस पर दाब लगाने एवं संपीडन करने पर क्या होगा? क्या इसके कणों के बीच की दूरी कम हो जाएगी? क्या आपको लगता है कि दाब बढ़ाने या घटाने से पदार्थ की अवस्था में परिवर्तन हो सकता है?



क्या आपने ठोस CO2 के बारे में सुना है? इसे उच्च दाब पर संग्रहित किया जाता है। जब वायुमंडलीय दाब का माप 1 एेटमॉस्फ़ीयर (atm)* हो, तो ठोस CO2 द्रव अवस्था में आए बिना सीधे गैस में परिवर्तित हो जाती है। यही कारण है कि ठोस कार्बन डाइअॉक्साइड को शुष्क बर्फ़ (dry ice) कहते हैं।

इस तरह से हम कह सकते हैं कि पदार्थ की अवस्थाएँ, यानी ठोस, द्रव और गैस, दाब और तापमान के द्वारा तय होती हैं।
 


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