जैव प्रक्रियाएँ ( Life Processes) Part-06 उत्सर्जन (Excretion)

 उत्सर्जन (Excretion)


जीवो के शरीर में बनने वाले हानिकारक अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया को उत्सर्जन कहा जाता है। जंतु एवं पादप दोनो में उत्सर्जन की क्रिया होती है। 


पौधों में उत्सर्जन (Excretion in Plants)

           

                   पौधों में कार्बनडाई ऑक्साइड, जल वाष्प, तथा ऑक्सीजन प्रमुख अपशिष्ट पदार्थ हैं , जिन्हें वो अपने शरीर से बाहर निकलते हैं। श्वसन और प्रकाश संश्लेषण के दौरान बनने वाले गैसीय अपशिष्ट पदार्थों को पौधे अपने रन्ध्रों (Stomata) के द्वारा वातावरण में छोड़ देते हैं। कुछ अपशिष्ट पदार्थ पौधों की पत्तियों में भी एकत्र हो जाते हैं, जिन्हें यह अपनी पत्तियों को गिराकर अपने शरीर से अलग कर लेते हैं। कुछ पौधे गोंद और रेजिन के रूप में भी अपने अपशिष्ट पदार्थों को पुराने जाइलेम में एकत्र कर लेते हैं, जिनका बहुत औद्योगिक महत्व भी है। कुछ पौधे अपने अपशिष्ट पदार्थों को अपने आस पास की मिट्टी में भी छोड़ते हैं। 





जंतुओं में उत्सर्जन (Excretion in Animals) 



         विभिन्न जंतुओं में शरीर की संरचना के अनुसार उत्सर्जन के लिए अलग अलग व्यवस्था है। अमीबा जैसे एककोशिकीय जीव अपने अपशिष्ट पदार्थों को सामान्य विसरण के द्वारा कोशिका के बाहर छोड़ देते हैं। केंचुए में नालिकाकार वृक्कक पाए जाते हैं। केंचुए अपनी त्वचा से भी उत्सर्जन करते हैं। मनुष्य जैसे उच्च कशेरुकी प्राणियों में वृक्कक पाए जाते हैं जिनसे इनमें उत्सर्जन की क्रिया सम्पन्न होती है। 


मानव में उत्सर्जन


मनुष्य में उत्सर्जन हेतु एक विकसित उत्सर्जन तंत्र होता है। जिसमें दो वृक्क (Two Kidneys) , दो मूत्रवाहिनी (Two Ureters) , मूत्राशय (Bladder), और मूत्रमार्ग (Urethra) पाए जाते हैं। 







वृक्क रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर कमर के ऊपर पीठ की तरफ पाए जाते हैं। जिनका आकार सेम के बीज की तरह होता है। वृक्कों का कार्य रक्त से विषैले पदार्थ जैसे यूरिया , अन्य अपशिष्ट लवण तथा अतिरिक्त जल को निकालना और मूत्र को उत्सर्जित करना है। वृक्कों से अपशिष्ट पदार्थ मूत्रवाहिनी में आ जाता है, जहां से यह मूत्राशय में एकत्र कर लिया जाता है। मूत्राशय में एकत्र मूत्र निश्चित समयन्ताराल में हमारे द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। मानव मूत्र में जल, कुछ लवण, नाइट्रोजनी पदार्थ, होते हैं , जिनमे से अधिकांश यूरिया और यूरिक अम्ल होता है। 






अपोहन (Dialysis) 


                 कभी कभी किसी व्यक्ति में किसी बीमारी, संक्रमण या चोट लगने की वजह से वृक्क काम करना बंद कर देते हैं। तो ऐसे व्यक्तियों के शरीर में हानिकारक उत्सर्जी पदार्थ एकत्र होने लगते हैं और वे शरीर से बाहर नहीं आ पाते हैं। जिससे उनकी मृत्यु तक हो सकती है। 




      ऐसे व्यक्तियों के रक्त को कृत्रिम विधि द्वारा छानकर उसमे से इन अपशिष्ट पदार्थों को अलग किया जाता है। यही कृत्रिम प्रक्रिया अपोहन (Dialysis) कहलाती है। इसमें रोगी की भुजा की धमनी से रुधिर को अर्धपारगम्य झिल्ली की नालियों के जाल में गुजारा जाता है। ये नालियां एक अपोहन द्रव के टैंक में डूबी रहती हैं। जब रक्त इन नालियों से होकर गुजरता है तो अपशिष्ट पदार्थ विसरण के द्वारा इस अपोहन द्रव में आ जाते हैं और रक्त का शुद्धिकरण हो जाता है। शुद्ध रुधिर को दूसरे सिरे से व्यक्ति की शिराओं के द्वारा वापस शरीर में प्रवेश करा दिया जाता है। 



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