उत्तराखंड का लोक पर्व - बिरुड पंचमी l Biruda Panchami

अगर आप उत्तराखंड की संस्कृति से परिचित हैं तो आपको यह तो पता ही होगा कि यहां साल भर अनेकों त्यौहार मनाये जाते हैं। लोग इन त्योहारों को समाज में एक दूसरे के साथ मानते हैं। लोग आपस में मिलते हैं जिससे उनमें आपसी प्रेम का भाव बढ़ता है। आप किसी भी त्यौहार को ले लें, सबका अपना अलग ही महत्व है।  हम आपको समय समय पर ऐसे त्योहारों की जानकारी देते आये हैं। 

तो इन्हीं में से एक त्यौहार है - बिरुड पंचमी




यह त्यौहार भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। नाम से ही स्पष्ट है कि यह पंचमी के दिन मनाया जाता है। परंतु आजकल के जो आधुनिक जीवन शैली में रहने वाले बच्चे हैं वो बिरुड के बारे में बहुत कम जानते होंगे। 
इस दिन पांच प्रकार के अनाजों को मिलाकर भिगाया जाता है। भिगाने के लिए वैसे तो पीतल या तांबे के बड़े कलश या तौले का प्रयोग किया जाता है, परंतु आधुनिक समय में अब पीतल या तांबे, कांसे के बर्तन नहीं मिलते है तो इनका स्थान अब स्टील ने ले लिया है। 
लोग कुछ दिन पहले से ही इन अनाजों को इकट्ठा करने लगते हैं। और पांच प्रकार के या कहीं कही तो सात प्रकार के अनाजों का मिश्रण बनाया जाता है। इसमें मुख्य रूप से गेहूं, मक्का, चना, सोयाबीन, गुरुन्स, उडद आदि का प्रयोग किया जाता है। पंचमी के दिन प्रातः देवताओं का पूजन करके नौले या धारे से साफ पानी भरकर लाते हैं और घर के मंदिर में आकर फिर इस साफ पानी में बिरुड भिगाये जाते हैं। बिरुड वही जो हमने अनाज और दालों का मिश्रण बनाया था, इसके साथ ही एक कपड़े की पोटली में भी बिरुड की कुछ मात्रा बांधकर उसे भी इसी पानी में भिगाया जाता है। इसके साथ ही बर्तन के चारों और गोबर और डूब से 5 या 7 छोटी छोटी आकृति बनाकर लगाया जाता है, जो सप्तऋषियों के प्रतीक माने जाते हैं जो बिरुड की रक्षा करते हैं।
अब इन बिरुड को ऐसे ही भीगने को रखा जाता है, पंचमी के अगले दिन षष्ठी ,इस दिन इन बिरुड को ऐसे ही रहने देते हैं बिना हिलाये, और फिर सप्तमी के दिन इनको पानी के धारे या नौले में इनका पानी बदल लेते हैं। 
सप्तमी और अष्टमी के दिन इनकी पूजा की जाती है। जिन्हें आठू सातू के नाम से जाना जाता है। जिसके बारे में हम आपको कल बताएंगे। अभी तो बिरुड पंचमी के बारे में इतना ही है जो पंचमी के दिन किया जाता है। 


अब इसका वैज्ञानिक महत्व देखें तो हम पहले भी आपको बता चुके हैं कि भाद्रपद का महीना ऐसा है जो जब खेतों में काम बढ़ जाता है, तो शरीर में आवश्यक तत्वों की पूर्ति करते हेतु अंकुरित दलों एवं अनाज का सेवन किया जाए तो बहुत लाभ होता है। तो शायद कामकाज भारी जिंदगी में शरीर को चुस्त दुरुस्त रखने के लिए ही प्राचीन ऋषि मुनियों ने इस त्यौहार को बनाया है। आप सब लोग अंकुरित दालों और अंकुरित अनाज के गुणों से तो परिचित ही हैं। अगर आप अंकुरित भोजन के फायदे जानना चाहते हैं तो हमें comment कीजियेगा,हम इससे जुड़ी जानकारी भी आपको साझा करेंगे।


तो ये था एक संक्षिप्त जानकारी इस त्यौहार के बारे में। अभी आगे आपको हम सातू आठू के बारे में जानकारी देंगे, हमसे जुड़े रहिएगा।


1 comment:

  1. पहाड़ी संस्कृति, हमारी पच्छयान

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