रक्षाबंधन का त्योहार : भाई बहन के अटूट प्रेम का त्योहार

रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, यह भाई बहन के अटूट प्रेम और विश्वास का त्योहार है। इस त्योहार का प्रचलन सदियों पुराना है। त्योहार से संबंधित अनेक कथाएं हैं।



कुछ पौराणिक कथाओं को हम आपके सामने लेकर आ रहे हैं।
कहा जाता है कि प्राचीन समय में राक्षस कुल में एक महादानी राजा हुए जिनका नाम था बलि। महाराज बलि ने स्वर्ग का सिंहासन प्राप्त करने के लिए 100 यज्ञ शुरू किए। देवराज इंद्र का सिंहासन डोलने लगा। सभी देवता भयभीत हो गए । तब वे सभी रक्षा के लिए ब्रह्मा जी के पास गए। तो उन्होंने बताया कि आप सभी लोग भगवान विष्णु के पास जाएं अब वही आपकी रक्षा कर सकते हैं। सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और उनसे रक्षा की गुहार लगाने लगे। तब भगवान विष्णु ने बामन अवतार लिया और राजा बलि जब यज्ञ समाप्त कर ब्राह्मणों को दान दे रहे थे तो दान लेने के लिए पहुंच गए। उन्होंने राजा से कहा कि मुझे दान में कोई हीरे जवाहरात या अन्य धन दौलत कुछ नहीं चाहिए। मुझे बस अपनी कुटिया बनाने के लिए 3 पग भूमि चाहिए। वहां पर दैत्यगुरु शुक्राचार्य भी थे वो भगवान विष्णु को पहचान गए थे। तो उन्होंने राजा बलि को रोकना चाहा, जब राजा बलि 3 पग भूमि बामन को देने के लोए संकल्प लेने को कमंडल से जल हथेली में लेने वाले थे तो गुरु शुक्राचार्य कमंडल के मुह में घुस गए ताकि जल बाहर न आ सके, तब बामन अवतार ने कुश की लकड़ी लेकर कमंडल के मुंह में डाली,उसी समय से शुक्राचार्य का एक आंख फुट गया,और वो बाहर निकल आये। राजा बलि ने संकल्प लिया कि मैं बामन को 3 पग भूमि स्वयं मापकर लेने को देता हूँ। उसी समय बामन रूप जो अभी 1 छोटे बच्चे के बराबर था बढ़ने लगा, ओर बामन भगवान का आकार अंतरिक्ष तक फैलने लगा, इसके पश्चात बामन भगवान ने पहले पग में सारी धरती नाप ली, दूसरे पग में स्वर्ग नाप लिया। राजा बलि अब भगवान विष्णु को पहचान चुके थे। इसके बाद भगवान विष्णु बोले कि हे राजन अब में तीसरा पग कहाँ रखूं?
राजा बलि भगवान के सामने सिर झुकाकर बैठ गए और बोले कि भगवन आप तीसरा पग मेरे सिर पे रखिये। भगवान ने तीसरा पग बलि राजा के सिर पर रखा और उन्हें पाताल पहुंचा दिया। भगवान राजा बलि पर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बलि राजा को कोई भी वरदान मांगने को बोला। टैब राजा बलि ने वरदान मांगा कि प्रभु आपने मुझे पाताल लोक में भेज दिया है तो मैं ये वरदान मांगता हूं कि आप मेरे साथ हमेशा पाताल लोक में रहें। और भगवान ने तथास्तु बोल दिया। तब से भगवान विष्णु , राजा बलि के साथ पाताल लोक में रहने लगे।
उधर माता लक्ष्मी का मन विचलित होने लगा कि अब क्या प्रभु सदैव पाताल लोक में ही रहेंगें। तब एक दिन श्रावण मास की पूर्णिमा को माता लक्ष्मी राजा बलि के पास गई और उन्हें राखी बांधकर अपना भाई बना लिया। और भाई से उपहार स्वरूप अपने पति को मांग कर स्वर्ग ले आयी। 

तो तब से ही रक्षाबंधन का ये पवित्र त्योहार मनाया जाता है।

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एक दूसरी कहानी भी है जो महाभारत काल की एक घटना है। जब पांडवों ने इंद्रप्रस्थ में अपना राज्य बना लिया था तो तब धर्मराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया जिसमें बहुत से देशों के राजा महाराजा आमंत्रित थे। वहां शिशुपाल नामक राजा भगवान श्रीकृष्ण का अपमान करने लगा और उन्हें गालियां देने लगा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसे कहा कि मैं तुझे 100 गलियों तक माफ करूँगा उसके बाद नहीं। पर शिशुपाल नहीं रुका और जैसे ही उसने 100 से ज्यादा गाली भगवान को दी उन्होंने तुरंत अपना सुदर्शन चक्र निकाल कर शिशुपाल का वध कर दिया। लेकिन इस सबमे सुदर्शन से भगवान की उंगली काट गयी और रक्त निकलने लगा। तब पांचाली द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर कृष्ण के हाथों में बांध दी। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी।द्रौपदी को इस उपकार का तोहफा भगवान ने उस वक़्त दिया जब भारी सभा में कौरव द्रौपदी को निर्वस्त्र करने के लिए उसका चीर हरण करने लगे। तब भगवान अदृश्य रूप में वहां प्रकट हुए और द्रौपदी की 5 गज की वो साड़ी कई मील लंबी बन गयी जिसे दुःशासन खींच ही नहीं पाया और द्रौपदी की लाज भगवान श्रीकृष्ण ने बचा ली। 



कहा जाता है कि तब से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है।
इसके अलावा और भी कई कहानियां हैं जो रक्षाबंधन से जुड़ी हैं। पर कारण चाहे जो भी हो ये त्योहार भाई बहन के असीम प्रेम और समर्पण को समर्पित है।

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