सरकारी तंत्र का निजीकरण : विकास की चुनौती

वर्तमान में हम एक अलग ही कार्यप्रणाली देख रहे हैं । सरकार के सारे सरकारी विभागों का निजीकरण कर रही है और इसके पीछे ये तर्क दिया जा रहा है कि अमुक सरकारी विभाग घाटे में जा रहा है। 



तो क्या निजीकरण किसी सरकारी तंत्र को घाटे से उबारने का एकमात्र विकल्प है ? 
 क्या इससे हम विकास प्राप्त कर सकते हैं? 
क्या निजीकरण से जनता लाभ प्राप्त करेगी? 


तो इन सब सवालों का जवाब देने से पहले आप विचार कीजिये एक ऐसी दुनिया की जहां सब निजी हाथों में हो। चलिए इतना ज्यादा नहीं हम सिर्फ यहां पर अस्पताल का उदाहरण लेते हैं सबसे पहले, 
सोचिए कि जितने भी सरकारी अस्पताल हैं उनको निजी हाथों में सौंप दिया जाए, बड़े बड़े सरकारी अस्पताल निजी संस्थानों को सौंप दिए जाएं तो क्या यही सब सुविधाएं हमें वहां पूर्व की भांति मिलते रहेंगी? 
नहीं, फिर निजी अस्पतालों के लूट तंत्र से जनता आज भी त्रस्त है तो सोचिए अगर सरकारी अस्पताल ही नहीं होगा जहां शायद गरीब एवं निर्धन व्यक्तियों का निशुल्क इलाज किया जाता है और लाखों लोगों की जिंदगी रोज बचती है वो गरीब जनता फिर इलाज नहीं करवा पाएगी। आपको सबसे पहले पर्चा बनाना पड़ेगा वो भी महंगा, भर्ती करने से पूर्व रुपये जमा करवाइए, अस्पताल में डॉक्टर अगर आपको देखते हैं तो उसका पैसा, जो दवा अभी तक सरकारी अस्पताल में निशुल्क मिलती है वही दवा उसी अस्पताल में निजीकरण के फलस्वरूप महंगे दामों में मिलेगी। इसके बाद अगर अस्पताल में भर्ती करने की बारी आई तो बिस्तर का खर्चा अलग से लगेगा। कुल मिलाकर सरकारी अस्पताल का अगर निजीकरण किया गया तो सिर्फ और सिर्फ जनता को नुकसान होगा। सरकार कहती है कि हमें राजस्व अधिक प्राप्त होगा पर उसकी कीमत जनता की जिंदगी होगी ये नहीं बोलती है। 


ये तो मैने सिर्फ अस्पताल का उदाहरण यहां पर दिया है इसी तरह अन्य सभी सरकारी तंत्र जिनका निजीकरण किया जा रहा है वो केवल कुछ पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाएगा। जनता का हाल पहले से भी ज्यादा बदतर हो जाएगा इससे। ओर जनता में गरीब और मध्यम वर्ग आते हैं जो इससे सबसे ज्यादा त्रस्त होंगे।

इसलिए सरकार को निजीकरण के विचार पर गहन मंथन करने की जरूरत है। और सरकारी तंत्र को ही किस तरह से सुधार जाए इस पर अधिक जोर देने की आवश्यकता है। 


निजी संस्थानों के लूट तन्त्र से सारी जनता वाकिफ है फिर भी सरकार इन जनता के आवश्यक सरकारी तंत्रों को निजी हाथों में सौंप रही है । ये भारत जैसे देश के लिए सही नहीं है। यहां इस तरह के प्रयोग के गंभीर दुष्परिणाम होंगे। सरकार को फिर से इस पर विचार करने की जरूरत है कि क्या उसका ये निर्णय सही है। अगले ब्लॉग में मैं आपको इसी चर्चा को आगे बढ़ाऊंगा। तब तक आप इसे लाइक कीजिये शेयर कीजिये जिससे जानकारी अधिक से अधिक लोगो को पहुंच सके। 


धन्यवाद।

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