विद्यालयी शिक्षा और प्रशिक्षण

विद्यालयों में शिक्षकों के होने वाले प्रशिक्षण से तो आप भली भांति परिचित हैं ही। आज हम इसी प्रशिक्षण पर थोड़ी चर्चा कर लेते हैं, इसके साथ ही गतवर्ष तक हुए प्रशिक्षण की भी थोड़ी समीक्षा कर लेते हैं।

यूं तो सरकारी विद्यालयों में हर वर्ष प्रत्येक विषय के शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाता रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य शिक्षक की शिक्षण विधा को निखारने से होता है। शिक्षण को रुचिकर बनाने के उपाय सिखाये जाना ये भी इस प्रशिक्षण का उद्देश्य रहा है। शिक्षण को दैनिक जीवन से जोड़कर उसे लाभप्रद बनाने हेतु ये प्रशिक्षण किया जाता है। परंतु क्या आपको लगता है कि इन प्रशिक्षणों में ये सब सिखाया जाता था। 

नहीं, ये सिर्फ कागजों में ही होता रहा है।
मैने भी कुछ प्रशिक्षण किये उनका अनुभव यहां बताने जा रहा हूँ।
शिक्षक प्रशिक्षण में सर्वप्रथम तो कठिन स्तर की  पहचान करने को कहा जाता है, कठिन स्तर से मतलब है कि कुछ ऐसे संबोध जिन्हें हम अच्छे से समझा नहीं पाते अपने विद्यार्थियों को। संबोध को समझने हेतु हमें कोई आसान विधि नहीं सूझती है। तो कठिन स्तर की पहचान हो गयी। अब इनका क्या करना है, आपको विषय विशेषज्ञों के द्वारा ये पढ़ा दिए जाते हैं। अब विषय विशेषज्ञों द्वारा ये नहीं बताया गया कभी कि इस विषय को पढ़ाने की आसान विधि क्या है। प्रशिक्षण संस्थानों के विषय विशेषज्ञ जो यही शोध करते हैं कि कैसे विषय को रुचिकर बनाया जाए, उन्होंने कभी भी अपने शोध द्वारा प्राप्त ज्ञान को साझा नहीं किया । 
वहीं देखें मास्टर ट्रेनर की जब बात आती है तो प्रत्येक जिले में DIET हैं, उनमे कई सारे उच्च ज्ञानी प्रवक्ता कार्यरत हैं, वो मास्टर ट्रेनर नहीं बनाए जाते हैं, मास्टर ट्रेनर तो हमारे ही बीच से शिक्षकों को उठाकर बना दिया जाता है। ये कैसा प्रशिक्षण है जिसमे मास्टर ट्रेनर तक इनके पास उपलब्ध नहीं रहते हैं। 

अब इन प्रशिक्षणों से किसे कितना लाभ मिला ये तो आप लोग ही बता सकते हैं। इस तरह के प्रशिक्षण तो समय और धन की बर्बादी हैं। 
कुछ लोग मेरी बातों से सहमत नहीं भी हो सकते हैं, परंतु सत्य यही है कि हम बात तो शिक्षा में ICT के प्रयोग की कर रहे हैं पर हमारे प्रशिक्षण कार्यक्रम बहुत खराब हालत में हैं। 
अभी किसी विषय पर ये सुझाव दे दिया जाता है कि ICT के प्रयोग से इसे समझाइए। youtube से वीडियो दिखाइए। 
ये सब ही करना है तो प्रशिक्षण की आवश्यकता क्या है । हम प्रशिक्षण भी तो youtube से ले सकते हैं। प्रशिक्षण में DIET , SCERT में जो शिक्षा पर शोध करने का कार्य मे लगे हैं उनके अनुभवों के आधार पर रुचिकर शिक्षण कैसे हो, ये बातें सिखाई जाएं। मास्टर ट्रेनर हर जिले में स्थित DIET के प्रवक्ता ही बनाये जाएं। जिससे लगे कि वास्तव में प्रशिक्षण हो रहा है। youtube से वीडियो दिखाइए ये कहने से अच्छा है कि उस तरह के वीडियो हम स्वयं कैसे बना सकते हैं इसे हमें सिखाया जाए। कंप्यूटर में एनिमेटेड वीडियो या अन्य विषयवस्तु को कैसे बनाये ये सिखाया जाना चाहिए। 


मास्टर ट्रेनर SCERT के विशेषज्ञ भी हो सकते हैं। 10 दिन के प्रशिक्षण हर जिले में हर विषय का प्रशिक्षण अलग अलग तारीख को तय किया जाए, और SCERT के विशेषज्ञ स्वयम ही प्रत्येक जिले में जाकर प्रशिक्षण दें । तो इससे कुछ लाभ होगा। SCERT के सदस्य जब प्रशिक्षण देने आएंगे तो विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों से आने वाले शिक्षकों के अनुभव उनसे साझा होंगे जिससे आने वाले वर्षों के प्रशिक्षण सभी जगह के विद्यार्थियों की मानसिक स्थिति को ध्यान में रखकर तैयार किये जायेंगे। 

अब इस वर्ष ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया जा रहा है, जिसमें विज्ञान का प्रशिक्षण सर्वप्रथम दिया जा रहा है। लेकिन बाध्यता यह है कि यह प्रशिक्षण केवल virtual class वाले विद्यालयों में ही दिया जाएगा। जबकि किया ये जा सकता था कि कोई एक app बनाकर , जो हर कोई मोबाइल में install करके कहीं से भी चला सकता, इस तरह से प्रशिक्षण दिया जाता तो वो ज्यादा सुविधाजनक होता। app बनाने के लिए विषेषज्ञों की टीम सरकार के पास पहले से ही है। वर्तमान प्रशिक्षण को ऑनलाइन तो किया गया परंतु केवल virtual class room से ये प्रशिक्षण शुरू करना कहीं न कहीं शिक्षकों के लिए परेशानी है, क्योकि कुछ शिक्षकों का नजदीकी केंद्र 50किमी से भी ज्यादा पड़ता है, ओर पहाड़ी क्षेत्रों में तो ये दूरी अत्यधिक है और असुविधा भी है। तो इस पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। 

बाकी प्रशिक्षण तो होते रहेंगे, पर प्रशिक्षण को रुचिकर बनाओ तो शिक्षण भी रुचिकर लगेगा। आपके कुछ सुझाव हों अगर तो comment जरूर कीजिये। 

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