सूर्यग्रहण और पौराणिक मान्यताएँ
हर साल सूर्य और चंद्र ग्रहण लगते हैं, और इन्हें पृथ्वी के अलग अलग भागों में अलग अलग समय पर देखा जा सकता है। ग्रहण को कभी भी नंगी आंखों से नहीं देखना चाहिए ये बात तो आपको पता ही होगी, ख़ासकर सूर्यग्रहण को तो बिल्कुल भी नंगी आंखों से नहीं देखना चाहिए। क्योंकि सूर्य से ग्रहण के समय बहुत हानिकारक किरणें निकलती हैं जो हमारे आंखों को बहुत नुकसान पहुंचाती हैं। चलिए ये सब बातें फिर करते हैं पहले हम आते हैं एक प्राचीन कथा की ओर जो बताती है कि सूर्यग्रहण किस तरह से लगता है। उसके बाद वैज्ञानिक पहलू पर भी चर्चा करेंगे।
तो कहानी की शुरुआत होती है जब देवासुर संग्राम के समय समुद्र मंथन हुआ था। उस वक़्त देवों और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। समुद्र से निकलने वाली प्रत्येक वस्तु देवताओं और राक्षसों में बराबर बनती जाएगी ये निर्णय हुआ था। हलाहल नामक विष भी इस समुद्र मंथन से निकला था जो बाहर आते ही अपना प्रकोप दिखाने लगा। जीव जंतु, पेड़ पौधे उसके प्रभाव से समाप्त होने लगे। तब सभी ने महादेव भगवान शिव का आह्वान किया और भगवान शिव ने जगत कल्याण के लिए सारा विष पी लिया,और उसे अपने गले में ही रोक दिया ,जिससे वो नीलकंठ कहलाये।
इसके बाद कई रत्न मिले जो बारी बारी से देवताओं और असुरों ने बंट लिए। अंत में धनवंतरी अमृत कलश को लेकर आये। तो दानव अमृत को उनसे छीनने के लिए उनके पीछे दौड़े। इसी भागमभाग में अमृत की कुछ बूंदे के जगह धरती पर गिर गयी। जहां प्रत्येक 12 वर्ष में महाकुंभ ,तथा प्रत्येक 6 वर्ष में अर्द्धकुंभ का आयोजन होता है। अब आती है अमृत की असली कहानी। उसी वक़्त अमृत को दानवों से बचने हेतु भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया। सारे असुर भगवान विष्णु के मोहिनी रूप पर मोहित हो गए। और अमृत को छोड़ दिया। अमृत कलश मोहिनी ने अपने हाथों में ले लिया, और दानवों से कहा कि वो सभी को अमृत पिलायेंगी। इसे देवताओं और दानवों में बराबर बराबर बांट दिया जाएगा। तब भगवान विष्णु चालाकी के साथ देवताओं को अमृत और असुरों को मदिरा पिलाने लगे। एक असुर को कुछ शक हुआ और वो देवताओं का वेश धारण कर देवताओं के बीच जा बैठा। और जैसे ही उसे अमृत मिला वो पी गया तो तुरंत ही सूर्यदेव और चंद्रदेव ने उसे पहचान लिया और तुरंत बोले कि ये तो असुर है जिसने अमृत पी लिया। उसी समय भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका गला काट दिया। क्योंकि वो अमृत पी चुका था तो वो मरा नहीं बल्कि उसका सिर और धड़ अलग अलग होते हुए भी वो जीवित रहा। उसका सिर का हिस्सा राहु और धड़ का हिस्सा केतु कहलाया। उसने सूर्य चंद्र को बोला कि वो इसका बदला उनसे अवश्य लेगा और उन्हें खा जाएगा। उसके बाद वो उनके पीछे दौड़ा।
तो कहा जाता है कि बस उस दिन के पश्चात वो जब भी सूर्य को निगलता है तो सूर्यग्रहण और चंद्रमा को निगलता है तो चंद्रग्रहण लगता है। क्योंकि उसके धड़ का भाग अलग है तो कुछ समय के पश्चात सूर्य और चंद्र उसके गले से नीचे को निकलकर बाहर आ जाते हैं और ग्रहण समाप्त हो जाता है।
तो ये तो है पौराणिक मान्यता ग्रहण को लेकर।
अब ग्रहण के वैज्ञानिक कारणों की भी चर्चा कर लेते हैं।
सूर्यग्रहण के बारे में कहा जाता है कि जब सूर्य और पृथ्वी के बीच मे चंद्रमा आ जाता है तो तब सूर्यग्रहण की स्थिति बनती है। पृथ्वी के जिस भाग में चंद्रमा की पूर्ण छाया पड़ती है वहां पूर्ण सूर्यग्रहण लगता है और जब छाया पूरी नहीं पड़ती है तो उसे आंशिक सूर्यग्रहण कहते हैं। सूर्यग्रहण के साथ ये भी स्पेश है कि सूर्यग्रहण अमावस्या को ही लगता है।
चंद्रग्रहण की बात करें तो चंद्रग्रहण के समय सूर्य और चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाती है, जिससे सूर्य का प्रकाश चंद्रमा पर नहीं पड़ता है। क्योंकि चंद्रमा का अपना प्रकाश नहीं है वह सूर्य के प्रकाश से ही चमकता है, अतः जब सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है तो सूर्य का प्रकाश चंद्रमा पर नहीं पड़ता है तो ये चंद्र ग्रहण की स्थिति होती है। यदि पृथ्वी की छाया पूरे चंद्रमा पर पड़ती है तो उसे पूर्ण चंद्रग्रहण, तथा जब पृथ्वी की छाया कुछ भाग में ही पड़ती है तो उसे आंशिक चंद्रग्रहण कहते हैं। चंद्रग्रहण केवल पूर्णिमा के दिन ही होता है।
तो ये हमने आपको ग्रहण से जुड़ी हुई प्राचीन मान्यता और आधुनिक वैज्ञानिक कारण भी बता दिया है। इसके अलावा अलग अलग धर्मों में अलग अलग कथाएं हो सकती हैं। परंतु हिदू धर्म प्राचीन समय से ही वैज्ञानिक कारणों के साथ घटनाओं को जोड़ता आया है। जैसे कि ग्रहण के समय बाहर नहीं निकलना चाहिए। ग्रहण से पूर्व ही उसका सूतक मानने की परंपरा, ग्रहण के समय खाना न खाना, ग्रहण के पश्चात स्नान करना, ये सब बातें जो हमारे धर्मग्रंथों में हैं यही सब बाटे वैज्ञानिक भी बोलते हैं , क्योंकि ग्रहण के समय आने वाली हानिकारक किरणों से बचने का यही उपाय है जो हमारे हिन्दू धर्म में हजारों साल पहले ही बोल दिया था। आज वही बातें वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सही साबित होती हैं।
तो चलिए ग्रहण का अनुभव लीजिये और हमें कमेंट करके बताइए कि आपने ग्रहण देखा कि नहीं।
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