लोक पर्व सातूं-आठूँ

 उत्तराखंड का लोक पर्व सातूं-आठूँ मुख्य रूप से कुमाऊं में मनाया जाता है जिसका एक अलग ही महत्व है। 

यह पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इससे पहले बिरुड पंचमी को बिरुड भिगाये जाते हैं जिसके बारे में हमने आपको बताया था अगर आपने अभी तक वह नहीं पढ़ा है तो नीचे दिए लिंक से पढ़ सकते हैं। 

लोक पर्व बिरुड पंचमी के जानकारी के लिए यहां क्लिक करें


फिलहाल हम बात करते हैं सातूं-आठूँ की। तो यह पर्व मुख्य रूप से कुमाऊँ की पहाड़ी क्षेत्रों में ज्यादा प्रचलित है। इन दो दिनों में शिव पार्वती की पूजा की जाती है। गौरा-महेश के रूप में उनकी मूर्ति बनाई जाती है। गांव की महिलाएं व्रत रखती हैं और एक जगह इकट्ठा होकर गौरा-महेश की पूजा की जाती है। अनाज,डाल, फलों एवं फूलों से शिव पार्वती के गौरा-महेश रूप का पूजन किया जाता है। महिलाएं मंगल गीत गाती हैं। भजन कीर्तन होता है। महिलाएं अपने पारंपरिक परिधान , पिछोड़ा, नथ, मांगटीका आदि पहनती हैं। पूजा करने के लिए पंचमी के दिन भिगाये गए जो बिरुड थे जिन्हें अलग से एक कपड़े को पोटली में बांध कर भिगाया था का प्रयोग किया जाता है। 

अष्टमी के दिन भी इसी तरह पूजा करके फिर अंत में जो गौरा-महेश बनाये गए थे उनका विसर्जन किसी नौले या धारे में कर दिया जाता है। 

तो इस तरह सातूं-आठूँ का पर्व पूरे हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है। 



उत्तराखंड अपनी विविध संस्कृति और परंपरा के लिए जाना जाता है। यहां अनेकों स्थानीय त्यौहार होते हैं, मेले लगते हैं, जिनकी जानकारी हम आपको ऐसे ही समय समय पर देते रहेंगे। आप हमारी आगे आने वाली पोस्ट की जानकारी तुरंत प्राप्त करने के लिए Subscribe पर क्लिक करके अपनी जानकारी भरकर प्राप्त कर सकते हैं।

1 comment:

Powered by Blogger.