जैव प्रक्रियाएं // Life Processes ( Part -01) परिचय

 जैव प्रक्रियाओं को समझने से पहले हमारे लिए यह जानना आवश्यक है कि  सजीव किन्हें कहते हैं ?

           सभी सजीवों में कुछ सामान्य लक्षण होते हैं जो इन्हें निर्जीव से अलग करते हैं। सजीवों के कुछ सामान्य लक्षण निम्नप्रकार हैं -

🔺सजीव वस्तुएं गति करती हैं।

🔺 सजीवों को भोजन, वायु, और जल की आवश्यकता होती है।

🔺 सजीवों में वृद्धि होती है।

🔺 सजीव सांस लेते हैं।

🔺 सजीव में उत्सर्जन की क्रिया होती है, शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकलते हैं।

🔺 सजीव प्रजनन करते हैं।

🔺 सजीव में संवेदनशीलता होती है।





जैव प्रक्रियाएं क्या हैं ? What is Life Processes? 


सभी जीव खुद को जीवित रखने के लिए कुछ मूल कार्यों को करते हैं। अपने जीवन को बचाये रखने हेतु सजीवों द्वारा की जाने वाली मूल क्रियाएं ही जैव प्रक्रिया कहलाती हैं। 

जैसे- पोषण , श्वसन, परिवहन, उत्सर्जन, नियंत्रण एवं समन्वय, वृद्धि या विकास, गति, प्रजनन, आदि।


सभी प्रकार की जैव प्रक्रियाओं को संपादित करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा सजीवों को भोजन से मिलती है। भोजन ही वह ईंधन है जो जीवधारियों को ऊर्जा प्रदान करता है। भोजन से रासायनिक अभिक्रियाओं के फलस्वरूप रासायनिक ऊर्जा प्राप्त होती है, जिसका उपयोग वे अपनी जैव प्रक्रियाओं को सम्पन्न करने के लिए करते हैं। भोजन की आवश्यकता सभी जीवन प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक है, अतः हम सभी जीव प्रक्रियाओं में सबसे पहले पोषण को ही देखते हैं। 


पोषण- 


भोजन एक कार्बनिक पदार्थ है। जो सरल से जटिल कई रूपों में होता है। भोजन को ग्रहण करने तथा उसे उपयोग करने की प्रक्रिया पोषण कहलाती है। 

पोषण शब्द की उत्पत्ति पोषक से हुई है। जीवों के जीवित रहने के लिए आवश्यक कार्बनिक और अकार्बनिक पदार्थ पोषक कहलाते हैं। पोषक को एक पदार्थ के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसे जिसे जीवधारी अपने वातावरण से प्राप्त करता है और उसका उपयोग ऊर्जा के रूप में करता है। जैसे - कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन आदि।


जीवों के द्वारा पोषकों ( कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज लवण, विटामिन, जल) के अंतर्ग्रहण के साथ इनके उपयोग की प्रक्रिया पोषण कहलाती है। 


पोषण की विधियां - 

1- स्वपोषित ( Autotrophic)

2- परपोषित (Heterotrophic) 




🔵 स्वपोषित Autotrophic - इस प्रकार के पोषण में जीवधारी अपने आस पास से सरल पदार्थों (कार्बनडाई ऑक्साइड, जल)  को लेकर स्वयं भोजन बनाता है। 


हरे पेड़ पौधों में पोषण की स्वपोषित विधि ही पाई जाती है। 

हरे पेड़ पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में क्लोरोफिल की सहायता से, वायुमण्डल से कार्बनडाई ऑक्साइड ओर भूमि से जल लेकर अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। इस क्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं।

सभी हरे पौधें स्वपोषी होते हैं। 


🔵 परपोषित Heterotrophic -  पोषण की इस विधि में जीवधारी दूसरे जीवों से अपना भोजन प्राप्त करता है वह स्वयं अपना भोजन नहीं बना सकता है। सभी जंतुओं में पोषण की परपोषित विधि ही पाई जाती है। सभी जंतु प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपने भोजन के लिए स्वपोषी जीवों पर ही निर्भर रहते हैं । 


परपोषित विधि मुख्य रूप से 3 प्रकार की होती है - 

1- मृतोपजीवी (Saprotrophic Nutrition)

2- परजीवी (Parasitic)

3- पूर्णजीवीय (Holozoic) 


✅ मृतजीवी Saprotrophic - इस प्रकार के पोषण में जीव अपना भोजन मृत पौधों, मृत जंतुओं तथा सड़े गले कार्बनिक पदार्थ से प्राप्त करता है। इसे उदाहरण कवक (Fungi) , तथा जीवाणु (Bacteria) हैं। 


✅ परजीवी Parasitic - परजीवी पोषण में एक जीव दूसरे जीव से अपना भोजन प्राप्त करता है बिना दूसरे जीव को मारे। जो दूसरे जीव से भोजन प्राप्त करता है वह जीव परजीवी कहलाता है । जैसे- किलनी, जोंक, जूं, अमरबेल, फीताकृमि आदि।



✅ पूर्णजीवीय Holozoic - इस प्रकार के पोषण प्रक्रम में जीवधारी जटिल कार्बनिक पदार्थों के रूप में भोजन को ग्रहण करता है, अपने शरीर के अंदर उसे पचाकर सरल पदार्थों में तोड़ता है तथा फिर उसका अवशोषण करता है। 

जैसे - मनुष्य, बिल्ली, कुत्ता, शेर, पक्षी आदि










इस अंक में इतना ही आगे के भागों में हम पौधों एवं जंतुओं में पोषण की विधि का विस्तार से अध्ययन करेंगे। 

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